लेखनी प्रतियोगिता -14-Jul-2022.... हुनर...
श्याम:- अरे रघु.... क्या हुआ ऐसे मुंह लटका कर क्यूँ बैठा हैं..!
रघु:- कुछ नहीं यार.... परेशान आ गया हूँ... इस नौकरी से... सोचता हूँ... कोई ओर काम ढूंढ लूं..।
श्याम:- अरे यार बस इतनी सी बात...उसके लिए इतना क्यूँ परेशान हो रहा हैं...। वैसे एक बात कहूँ रघु... अगर तू सिर्फ पैसों की वजह से ये नौकरी छोड़ रहा हैं तो ठीक हैं.... तू कुछ साइड में दूसरा काम कर ले... पर ये मत छोड़..।
रघु:- अरे यार.... सिर्फ पैसा नहीं.... मैं खुद भी अब थक गया हूँ...रोज रोज के तमाशे से..।
श्याम:- चल छोड़.... ये बात... चल तुझे आज कुछ दिखाता हूँ मैं...।
रघु:- क्या दिखाना हैं...!
श्याम:- तू चल तो सही.... आजा बैठ गाड़ी पर...।
श्याम और रघु बाईक पर बैठकर चल दिए..... कुछ दूरी बाद चलने पर श्याम ने एक बड़े से टीवी के शोरूम के सामने अपनी बाईक रोकी और रघु से कहा:- रघु वो सामने शोरूम देख रहा हैं....।
रघु:- हां.... इसमें ऐसा क्या खास हैं...।
श्याम:- खास उस शोरूम में नहीं... शोरूम के बाहर हैं...। आजा मेरे साथ... तुझे कुछ दिखाता हूँ...।
श्याम अपनी बाईक सामने खड़ी करके शोरूम की तरफ़ चल दिया.. शोरूम के बाहर एक बड़ा सा पेड़ था....। उसके चारों तरफ़ लोहे की जाली लगी हुई थी..। श्याम ने इशारा करके कहा:- रघु.... वहाँ सामने देख....।
रघु ने देखा तो पेड़ की ओट में दो छोटे बच्चे चुपके से खड़े थे और उनकी नजर शोरूम के भीतर चल रहें टीवी पर थी..।
श्याम:-कुछ दिखा..?
रघु:- हां वो दो बच्चे...।
श्याम:- हां वो बच्चे यहाँ पास की कच्ची बस्ती में रहते हैं...। शोरूम में चल रहें कार्टून को देखकर खुश हो रहें हैं... इस कांच के पार से उन्हें यहाँ सुनाई कुछ भी नहीं दे रहा हैं.... बस देखकर खुश हो रहें हैं....। जब भी दुकान का मालिक या कोई कर्मचारी उनको देखता हैं तो मारकर भगा देता हैं... ये दोनों भाग जाते हैं.... लेकिन थोड़ी देर बाद फिर से यहाँ आ जाते हैं और चुपके से टीवी देखने लगते हैं....। मैं अक्सर इनको ऐसा करते देखता हूँ....। चल अभी तुझे एक ओर जगह ले चलता हूँ...।
ऐसा कहकर वो रघु को बाईक पर बिठाकर एक घर के बाहर ले आया...और कहा:- वो घर के बाहर बच्चे को देख रहा हैं... वो अपने दादा का इंतजार कर रहा हैं....।
रघु:- क्यूँ.... वो कहीं बाहर से आ रहें हैं क्या...?
श्याम:- नहीं... वो अपनी फैक्ट्री से काम करके थके हारे आ रहें हैं.... लेकिन ये बच्चा रोज इस वक्त उनका ऐसे ही दरवाजे पर खड़े होकर इंतजार करता हैं... पता हैं क्यूँ..!
रघु:- कोई खिलौना या कुछ खाना पीना ला रहें होंगे...।
श्याम हंसते हुए:- नहीं यार....इस घर की हालत देखकर तुझे लगता हैं ये लोग रोज़ कोई खिलौना या बाहर का खाना ला पाते होंगे..?
रघु:- तो फिर...?
श्याम:- लो वो आ गए दादा जी.... अभी तुम खुद ही देख लो..।
उस शख्स को देखकर बच्चा खुशी से उछलने लगा... दादा आ गए.... दादा आ गए....।
उस शख्स को देखकर लग रहा था की उसमें बिल्कुल भी जान नहीं बचीं हैं... पर वो दरवाजे पर आते ही अपने हाथ में लाई हुई खाली टिफिन की थैली को साईड में रखा और घुटनों के बल लेट गए...(घोड़ा बनकर) वो बच्चा उनकी पीठ पर चढ़ा और चल मेरे घोड़े टिक टिक टिक..... चल मेरे घोड़े टिक टिक टिक... बोलने लगा...। वो शख्स बच्चे को घर के भीतर उसी कंडिशन में लेकर गया...। उसी वक्त एक औरत भीतर से आई और खाली टिफिन लेकर वापस चलीं गई...।
श्याम:- ये बच्चे के दादा है.... इनके बेटे यानि बच्चे के पिता की दो साल पहले एक्सीडेंट में मौत हो गई.... ये पास में डायमंड फैक्ट्री में काम करते हैं बेटे की मौत के बाद से...। जो औरत तुने देखी वो बच्चे की मां थीं....। बच्चा रोज़ ऐसे ही इंतजार करता हैं....। वो शख्स कितना भी थका हुआ हो... लेकिन बच्चे को कभी मना नही करता..।
रघु:- वो तो सब ठीक हैं श्याम.... पर तु मुझे ये सब क्यूँ दिखा रहा हैं...।
श्याम:- तू अभी भी नहीं समझा....। चल आजा बताता हूँ तुझे...।
वो दोनों बाईक पर बैठकर कुछ दूरी पर एक चाय की स्टाल पर चले गए...।
श्याम:- रघु.... इस दुनिया में सबसे मुश्किल काम पता हैं क्या हैं..!
रघु.. :- क्या..?
श्याम:- किसी को हंसाना...। तुझे पता हैं रघु... पैसे के लिए तो हर कोई कमाता हैं...। हर कोई आज इस होड़ में लगा हुआ हैं की बस जल्दी और ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाएं..। कमाना गलत नहीं हैं... मैं जानता हूँ आज पैसे के बिना कुछ भी नहीं हैं... लेकिन रघु तुझे जो हूनर कुदरत ने दिया हैं... उसे मत छोड़...। जब तू जोकर बनकर तमाशा करता हैं... कितने चेहरों पर मुस्कान आ जाती हैं... तुने देखा हैं..!
आज शोरूम के बाहर खड़े हुवे वो बच्चे बार बार डांट खाने के बाद भी उधर जातें हैं क्यूँ.... सिर्फ टीवी पर चल रहें उन कार्टून को देखने और उसमें अपनी मुस्कान ढूंढने...। वो दादा जी को देखकर बच्चे के चेहरे पर जो मुस्कुराहट आतीं हैं... उसे देखकर वो बुढ़ा शख्स अपनी थकान कुछ देर के लिए भूल जाता हैं...। तुझे तो हजारो लोगो को हंसाने और उनके चेहरे की मुस्कान बनने का हूनर हैं यार...उसे चंद रुपयो से मत तोल...। अगर पैसा ही वजह हैं तो तू साईड में कुछ छोटा मोटा दूसरा काम कर ले...।
रघु:- तू सही कह रहा हैं यार... मैं रुपयों की लालच में कुछ देर के लिए बहक गया था... पर तू सही कह रहा हैं... मैने देखा हैं उन मासूम बच्चों को मेरे तमाशे पर ताली मारकर कहकहे लगाकर हंसते हुए...। सच में हर चीज को हम पैसों से नहीं खरीद सकते...। थैंक्स यार...।
श्याम:- चल इसी बात पर आज की चाय मेरी तरफ़ से...।
दोनों दोस्त कहकहे लगाकर हंस दिए...।
Saba Rahman
16-Jul-2022 11:20 PM
Osm
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Reyaan
16-Jul-2022 10:47 PM
बहुत खूब
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Rahman
16-Jul-2022 10:28 PM
👌👌👌
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